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DevBhoomi Insider Desk
• Mon, 18 Jul 2022 4:30 pm IST


आर्थिक खुशहाली का रास्ता


अमेरिका में महंगाई चार दशक के नए शिखर पर पहुंच गई है। इसके बाद कहा जाने लगा है कि इस महीने के आखिर में वहां ब्याज दरों में और 1 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है। पहले इसमें 0.75 फीसदी बढ़ने का अंदाजा लगाया जा रहा था। अमेरिका में पिछले महीने महंगाई के नवंबर, 1981 के बाद सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंचने की वजह पेट्रोल, डीजल के साथ खाने की चीजों के दाम में आई तेजी है। इधर, भारत में जून में महंगाई दर 7 फीसदी के करीब रही, जो रिजर्व बैंक की अधिकतम 6 फीसदी के लक्ष्य से ऊपर है। अगले दो महीने तक इसके नीचे आने के आसार नहीं हैं। भले ही पिछले कुछ दिनों में कच्चे तेल और खाने के तेल के दाम में अच्छी कमी आई है, जिनका भारत बड़े पैमाने पर आयात करता है।

हम अमेरिका और भारत की महंगाई की बात यहां इसलिए कर रहे हैं क्योंकि इसका असर आपकी जेब पर पड़ने वाला है। अभी अमेरिका में कर्ज महंगा होने की वजह से विदेशी निवेशक भारत से पैसा निकाल रहे हैं, जिससे रुपया कमजोर हो रहा है। अगर इस महीने के आखिर में अमेरिका में कर्ज और महंगा होता है तो विदेशी निवेशकों की भारत से बेरुखी जारी रह सकती है। इससे शेयर बाजार और रुपया दोनों की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं। इससे बचने के लिए रिजर्व बैंक को भी अगस्त में ब्याज दरें बढ़ानी पड़ेंगी। यानी आपका होम लोन, कार लोन और महंगा हो जाएगा। दूसरे, जब महंगाई दर बढ़ती है तो आपके हाथ में आने वाले पैसे की वैल्यू कम होती है। अच्छी बात यह है कि इस साल सितंबर से भारत में महंगाई दर कम होने की उम्मीद की जा रही है। इसमें कुछ मदद हाल में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कई कमोडिटी के दाम में आई गिरावट से भी मिल रही है।

कमोडिटी के दाम में यह गिरावट आर्थिक मंदी के डर से आ रही है, जो आगे भी जारी रह सकती है। असल में, जिस आक्रामक तरीके से अमेरिका में ब्याज दरों में बढ़ोतरी हो रही है और आगे होने के अनुमान लगाए जा रहे हैं, उससे वहां आर्थिक विकास दर में गिरावट आनी तय है। अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी इकॉनमी है। दूसरे नंबर पर चीन है, जो कोविड जीरो पॉलिसी के कारण सख्त लॉकडाउन की नीति अपनाए हुए है। इससे वहां भी जीडीपी ग्रोथ पर दबाव बना हुआ है। यूरोप की भी आर्थिक हालत ठीक नहीं है। इसलिए समूची दुनिया आगे मंदी के भंवर में फंस सकती है। लेकिन यह भी माना जा रहा है कि यह मंदी छोटी अवधि की होगी। अमेरिका में कुछ एक्सपर्ट तो यह भी कहने लगे हैं कि 2023 से ही ब्याज दरों में कटौती का सिलसिला शुरू हो सकता है। अगर वाकई ऐसा हुआ तो यह भारत के लिए अच्छा होगा। बेशक, आर्थिक मंदी की आंच हमारी इकॉनमी पर भी पड़ेगी, लेकिन इससे जल्द उबरने पर हम आयातित महंगाई से बच जाएंगे। इससे आरबीआई के लिए भी कर्ज सस्ता करने का रास्ता खुलेगा, जो खुशहाली का नया दरवाजा खोल सकता है।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स