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• Sat, 20 Mar 2021 2:36 pm IST


अमेरिका में नस्ली हमले का नया निशाना


कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया पर अपना प्रभाव डाला है लेकिन इस वायरस से सबसे ज्यादा नुकसान अमेरिका को उठाना पड़ा है। साढ़े पांच लाख से अधिक लोगों के मारे जाने और अर्थव्यवस्था को जबर्दस्त झटका लगने के अलावा इस दौरान देश में हिंसा भी बढ़ी है, खास कर एशियाई अमेरिकी लोगों के खिलाफ। बीते मंगलवार को जॉर्जिया में एक मसाज सेंटर पर हुए नस्ली हमले में छह महिलाओं समेत एशियाई मूल के आठ लोगों के मारे जाने की घटना इसी सिलसिले की ताजा कड़ी है। 21 साल के एक श्वेत युवक को हमले के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। रिपोर्टों के अनुसार पिछले एक साल में एशियाई अमेरिकी लोगों के खिलाफ हिंसा की तीन हजार से अधिक घटनाएं हुई हैं। इनमें सबसे अधिक निशाना बनाया गया है बुजुर्गों और महिलाओं को।

ऊपर दिखने की सजा

यह समस्या इतनी गंभीर मानी गई है कि खुद राष्ट्रपति जो बाइडेन ने बयान जारी किया कि ऐसे हमले बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे। उन्होंने रेखांकित किया कि महामारी के दौरान एशियाई अमेरिकी मूल के लोगों ने फ्रंटलाइन पर रहकर काम किया है। संभवत: फ्रंटलाइन से उनका तात्पर्य अमेरिकी अस्पतालों में बड़ी संख्या में काम करने वाले भारतीय डॉक्टरों से था। यहां यह जिक्र भी शायद गैर-जरूरी न समझा जाए कि कुछ ही दिन पहले नासा के एक कार्यक्रम के दौरान बाइडेन ने मजाक में कहा था कि भारतीय लोग अमेरिका के महत्वपूर्ण पदों पर काबिज होते जा रहे हैं, जो असल में गलत नहीं है। बाइडेन की टीम में भी कई महत्वपूर्ण पदों पर भारतीय मूल के लोग विराजमान हैं। बाइडेन की स्पीच भी भारतीय मूल के विनय रेड्डी लिखते हैं।

एशियाई अमेरिकियों पर हमलों की गंभीरता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्या नाडेला ने भी इस संबंध में बयान दिया है और अमेरिका के कुछ राज्यों में इसके खिलाफ कुछेक संगठनों ने प्रदर्शन भी किए हैं। एशियाई अमेरिकी मूल के लोगों में चीनियों और भारतीयों के अलावा एशिया प्रशांत के कई देशों के निवासी भी आते हैं। मसलन फिलीपींस और इंडोनेशिया जैसे देशों के लोगों के खिलाफ हमले बढ़े हैं। इसकी एक बड़ी वजह कोरोना से जुड़ी मानी जा रही है। पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के कार्यकाल में कोरोना वायरस को वूहान वायरस कह कर प्रचारित किया गया। इससे लोगों का गुस्सा चीनी मूल के लोगों की ओर मुड़ा और उनके खिलाफ हमले बढ़े। खास कर न्यू यॉर्क में। इसके बाद जब बिजनेस बंद होने लगे और लोगों में बेरोजगारी बढ़ी तो भारतीय लोगों पर भी हमले हुए।

भारतीय समुदाय अमेरिका के सबसे समृद्ध तबकों में से एक माना जाता है। आम तौर पर भारतीय लोग अमेरिका में या तो सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं या डॉक्टर हैं या ऐसे ही अन्य पेशों से जुड़े होते हैं जो उन्हें उच्च आय वर्ग का बनाते हैं। इसके अलावा भारतीय ग्रॉसरी स्टोर्स और भारतीय रेस्टोरेंट्स की भी अमेरिका में अच्छी-खासी संख्या है। जाहिर है, बेरोजगारी और आर्थिक रूप से तंगी झेल रहे गरीब अमेरिकियों की नजर में सबसे पहले भारतीय और एशियाई लोग ही आते हैं। ऐसे में अगर कोई धारा उनके गुस्से को इन समुदायों की ओर मोड़ने की कोशिश करे तो इन लोगों पर हमले की आशंका स्वाभाविक रूप से बढ़ जाती है। पिछले साल संयुक्त राष्ट्र ने भी अपनी एक रिपोर्ट में अमेरिका में एशियाई मूल के लोगों के खिलाफ हुए हमलों पर चिंता जताई थी।

गौर करने की बात यह है कि इन हमलों में एक खास तरह का पैटर्न देखा गया है। ये हमले खास तौर पर बड़े शहरों में हुए हैं। मसलन कैलिफोर्निया के बे एरिया में, सैन फ्रांसिस्को में और न्यू यॉर्क जैसी जगहों पर। इन शहरों में बड़ी संख्या में भारतीय रहते हैं और पिछले कई महीनों से कुछ संगठन इस मामले में सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश करते रहे हैं। लेकिन ट्रंप के शासन काल में इन बातों पर ध्यान नहीं दिया गया था। बाइडेन के आने से यह स्थिति बदली है। अब सरकार ने कड़ा रवैया अपनाया है ताकि ऐसी घटनाओं पर अंकुश लग सके। मगर समाज के एक हिस्से में नफरत इतने गहरे बैठी हुई है कि सिर्फ प्रशासनिक सख्ती से इसे काबू नहीं किया जा सकता।

कुछ जानकारों का मानना है कि उपराष्ट्रपति के रूप में भारतीय मूल की महिला कमला हैरिस का चुना जाना इन हमलों के लिए उकसावे का काम कर रहा है लेकिन फिलहाल ऐसे प्रमाण नहीं मिले हैं। एफबीआई के अनुसार हिंसा की कुछ घटनाओं में नस्ली भेदभाव का पुट जरूर देखने को मिला है। ध्यान देने की बात है कि अमेरिका में विदेशी मूल के लोगों के खिलाफ हिंसा की घटना नई नहीं है। उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में जब चीनी लोगों ने अमेरिका आना शुरू किया था तो उनके खिलाफ भी व्यापक हिंसा हुई थी। तब अमेरिका के गरीब लोगों को लगा था कि चीनी लोग उनकी नौकरियां हथिया रहे हैं। अमेरिका के न्यू यॉर्क में आयरिश गैंगों के बीच व्यापक हिंसा की कहानियों पर हॉलिवुड में फिल्में भी बनी हैं। इसी तरह इटली के लोग जब आए थे तो उनकी मदद माफिया ने की थी।

भेदभाव का लंबा इतिहास

कहने का तात्पर्य यह है कि अमेरिका को भले ही सपनों की धरती और प्रवासियों का देश कहा जाता हो लेकिन प्रवासियों के प्रति भेदभाव को लेकर अमेरिका का लंबा इतिहास रहा है। दो दशक पहले जब 11 सितंबर 2001 को अमेरिका में ट्विन टावर पर आतंकी हमले की घटना हुई थी तो मुस्लिम समुदाय के या अरबी नाम वाले हर व्यक्ति को भेदभाव झेलना पड़ा था, खासकर उसको जिसकी दाढ़ी या पगड़ी थी। इसी गलतफहमी में भारत के सिख समुदाय के लोग भी बड़ी संख्या में निशाने पर आए। बहरहाल, अमेरिका कोरोना वायरस के चंगुल से धीरे-धीरे बाहर निकल रहा है लेकिन नस्ली हिंसा की चुनौती अभी भी उसके सामने मुंह बाए खड़ी है, चाहे वह काले लोगों के प्रति हो या एशियाई मूल के अमेरिकी लोगों के प्रति।

सौजन्य - जे सुशील