Read in App

DevBhoomi Insider Desk
• Wed, 22 Mar 2023 2:00 pm IST


किसानों को कैसे मिले फसल बीमा का फायदा


होली के बाद देश के बड़े हिस्से में हुई बेमौसम बरसात, ओलावृष्टि और तेज हवाओं के कारण काफी फसल बर्बाद हो चुकी है। तेज हवाओं के कारण नमी से भरे खेतों में सभी फसलें बिछी पड़ी हैं। राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में लगभग 80 फीसदी फसल तबाह हो चुकी है। संबंधित राज्यों के मुख्यमंत्री घोषणा कर चुके हैं कि क्षतिग्रस्त फसलों को बीमा योजना के तहत लाकर उचित मुआवजा दिया जाएगा। लेकिन बीमा योजना के पुराने अनुभव से लगता नहीं कि किसानों के नुकसान की भरपाई हो पाएगी।

योजना पर योजना
1972-73 में देश की पहली फसल बीमा योजना की शुरुआत गुजरात में एच-4 कपास से हुई। बाद में फसल बीमा योजना 1972, पायलट फसल बीमा योजना 1979, व्यापक फसल बीमा योजना 1985, प्रायोगिक फसल बीमा योजना 1997, बीज फसल बीमा पायलट योजना 2000 और कृषि आय बीमा योजना 2003 आदि चलती रहीं। फिर 13 जनवरी 2016 को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना भी लाई गई। कहा गया कि इससे उन किसानों पर प्रीमियम का बोझ कम होगा, जो खेती के लिए कर्ज लेते हैं और खराब मौसम से उनकी रक्षा भी होगी।

घटता दायरा
यह योजना लगभग दम तोड़ती दिख रही है। कर्ज नहीं लेने वाले किसानों ने भी इस योजना में कम रुचि दिखाई है। पिछले 3 वर्षों में इसका दायरा घटा है। संसद में दी गई एक जानकारी के मुताबिक, खरीफ सीजन में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत आने वाले किसानों की संख्या 62 फीसदी तक घटी है। 2021 में उनकी संख्या 1.51 करोड़ थी। इसी तरह रबी के दौरान बीमा कराने वाले किसान 46 फीसदी घटे हैं। 2021 में इनकी संख्या 92 लाख थी। खरीफ के तहत बीमा का क्षेत्र 57 और रबी का 22 फीसदी ही रह गया है। सरकारी, गैर-सरकारी बीमा कंपनियों के मुनाफे में तेज वृद्धि भी इसकी सफलता पर सवाल खड़े कर रही है।

CCE की मुसीबत
किसानों की शिकायत है कि बीमा कंपनियां अपने सर्वे में फसल के नुकसान आकलन बाजार रेट पर नहीं, बल्कि जुताई की लागत पर करती हैं। नुकसान के आकलन के तरीके रूप में क्रॉप कटिंग एक्सपेरिमेंट (CCE) शुरू से ही आलोचना के घेरे में है। इससे औसत उपज के आंकड़े और नुकसान जुटाए जाते हैं। योजना के 2020 के संशोधित परिचालन दिशानिर्देशों में भी कहा गया है कि उपज डेटा की क्वॉलिटी पर विवाद योजना के प्रभावी क्रियान्वयन में एक बाधा है। कई अध्ययनों ने किसानों, बीमा कंपनियों और सरकारों के बीच CCE की विसंगतियों को उजागर किया है, जबकि कुछ मामलों में हवाई सर्वेक्षण का दुरुपयोग पाया गया है। सर्वे में नुकसान कम दिखाने के लिए ड्रोन के जरिए नष्ट फसल की जगह स्वस्थ फसल को दिखा दिया। कुछ मामलों में CCE स्टाफ ने किसानों को इसलिए धमकाया कि वे अपना नुकसान कम करके दिखाएं।

अलग होते राज्य
इन तमाम वजहों से प्रधानमंत्री बीमा योजना से किसान, राज्य और यहां तक कि बीमा कंपनियां भी खुश नहीं हैं। शुरू में यह योजना 14 निजी और सभी पांच सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियों के साथ शुरू हुई। लेकिन खरीफ सीजन में केवल 10 निजी कंपनियों और एक PSU ने ही बोली लगाई, मतलब यह योजना घाटे में चल रही है। इसके चलते आधा दर्जन से अधिक राज्यों ने इससे खुद को अलग कर लिया है। पंजाब ने तो 2016 में ही इसे अलविदा कह दिया था। बाद में बिहार, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, गुजरात, तेलंगाना और झारखंड ने भी इस योजना को बंद कर दिया। राज्य अब अपनी सफल और लाभदायक योजनाओं के साथ सभी विवाद निपटा रहे हैं।

हालांकि योजना में आई खामियों को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने दो पैनल बनाए हैं। एक विभिन्न प्रौद्योगिकी आधारित दृष्टिकोण को अपनाने और फसल उपज अनुमान में ड्रोन के उपयोग का अध्ययन करेगा। दूसरा विभिन्न बीमा मॉडलों का विश्लेषण करेगा। मगर इस बीच किसानों को कितना मुआवजा मिलेगा, यह अनिश्चित ही रहेगा।


सौजन्य से : नवभारत टाइम्स