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DevBhoomi Insider Desk
• Sat, 21 Jan 2023 4:13 pm IST


अंधेरे और कोहरे के बीच देर रात दिल्ली की सड़कों पर


वक्त होगा रात के ढाई बजे। आप धौलाकुआं के रास्ते सरदार पटेल मार्ग में दाखिल होते हैं। धौला कुआं तक सड़क पर कुछ कारें दिखाई दे रही हैं। लेकिन सरदार पटेल मार्ग का रुख करते ही आप एक निर्जन स्थान पर होते हैं। ग्यारह मूर्ति तक सिर्फ आप ही होते हैं। जिस सड़क पर दिनभर हेवी ट्रैफिक चल रहा होता है, वहां एक भी वाहन या इंसान नहीं। यहां पर न जाने कब से सैकड़ों बंदर भी बैठते-घूमते मिलते हैं दिल्ली को। सब रिज में छिपे होंगे। आप महान मूर्तिकला मर्मज्ञ बी.सी. चौधरी की बापू की दांडी मार्च को चित्रित करती अप्रतिम कृति ग्यारह मूर्ति के पास पहुंच गए। आपको इसमें बापू और उनके अन्य साथी दिखाई देते हैं। बापू को देखकर आप आश्वस्त महसूस करते हैं। यह प्रतिमा राजधानी का लैंडमार्क है।

अंधेरे और कोहरे के बीच सफर जारी है। कब मदर टेरेसा क्रिसेंट आया, कब अकबर रोड निकला और कब इंडिया गेट आया, आपको पता ही नहीं चलता। अकबर रोड को देश के सबसे खासमखास एरिया का दर्जा प्राप्त है। यहां पर ही है कांग्रेस का मुख्यालय और लोकसभा स्पीकर का बंगला। अकबर रोड के बुजुर्ग पेड़ों की परछाइयां नजर आ रही हैं। ये सब 1930 तक लग गए थे। बीच-बीच में कोहरा छंट भी रहा है। फिर वह अचानक सड़कों को अपने आगोश में ले लेता है। बड़ौदा हाउस के पास एक शख्स दिखाई देता है। अकेला अपनी मंजिल की तरफ बढ़ रहा है। उस सर्द रात में यह पहला शख्स देखा हमने। कहीं कोई पुलिस वाला नहीं दिखा, कोई पुलिस गाड़ी भी नहीं मिली। इंडिया गेट के आसपास कुछ कारें दाएं-बाएं निकलती दिखाई दीं।

दिल्ली की ठंड आतंकित करती है, पर घर से निकले बगैर काम कहां चलता है। आईटीओ पहुंचते ही लगा कि दिल्ली अगले दिन की तैयारी करने लगी है। अब रात के सवा तीन बज रहे होंगे। आईटीओ पर पहुंचने से पहले हनुमान जी की मूर्ति। दिल्ली लगभग आधी सदी से बजरंग बली की मूर्ति के दर्शन कर रही है। आईटीओ पर रेड लाइट हुई तो कई कारें और मोटर साइकिलें आकर खड़ी हो गईं। कुछ रेड लाइट की परवाह किए बगैर आगे भी बढ़ गए। यह दिल्ली का मिजाज है। कई दिल्ली वालों को यातायात के नियम मानने में बड़ा कष्ट होता है। उन्हें लगता है कि यह उनकी शान के खिलाफ है। आईटीओ पर एजीसीआर बिल्डिंग के आगे पांच-छह थ्री वीलर भी खड़े थे। हम रुके उनके ड्राइवरों से बात करने के लिए। सब पिछली सीट पर कंबल ओढ़े हुए थे। एक ड्राइवर पिछली सीट पर बीड़ी के कश ले रहा था। इतनी ठंड और ठंडी हवाओं में घर से बाहर! हमें देखते ही खड़ा हो गया। उसने बताया कि नाइट शिफ्ट दिन से बेहतर होती है। ‘क्यों?’ ‘रात को सड़कों पर ट्रैफिक नहीं होता और दो-तीन सवारी मिल जाने से दिहाड़ी बन जाती है। रात को सवारियां किराए को लेकर पंगा भी नहीं करतीं।’

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स