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DevBhoomi Insider Desk
• Fri, 4 Nov 2022 5:17 pm IST


क्या मोरबी हादसे का सच सामने आएगा?


“हूं अहिं छूं पण मारू मन मोरबी ना पीड़ित परिवार साथै छे” (मैं यहां हूं लेकिन मेरा मन मोरबी के पीड़ित परिवारों के साथ है) गुजराती भाषा में कहे गए ये शब्द प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हैं। 30 अक्टूबर को लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती का मौका था। इस अवसर पर राजपीपला स्थित स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी पर आयोजित समारोह के मुख्य अतिथि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थे। प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर अपने संबोधन में मोरबी के मच्छू डैम पर झूलते पूल के टूटने की घटना पर दुःख जताते हुए यह बात कही। उनके संबोधन के बाद सभी सांस्कृतिक कार्यक्रम स्थगित कर दिए गए।

आम आदमी पार्टी के गोपाल इटालिया और इशुदान गढ़वी घटना वाली रात को ही मोरबी पहुंच गए। अगले दिन सुबह गुजरात कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी मोरबी पहुंच कर पीड़ित परिवारों के साथ संवेदना व्यक्त की। अगले दिन प्रधानमंत्री भी पहुंचे, लेकिन इन औपचारिक कवायदों का और लोगों के लिए चाहे जो भी मतलब हो, मृतकों के परिवारजनों का गम इससे दूर नहीं होने वाला।

सिरामिक का मक्का
इस हादसे से पहले तक मोरबी गुजरात के बाहर सिरामिक उद्योग की वजह से ही जाना जाता था। सिरामिक उद्योग का मक्का कहलाने वाला मोरबी कस्बा गुजरात के काठियावाड़ प्रायदीप में बसा हुआ है। 2011 की जनगणना के अनुसार, मोरबी की जनसंख्या 1,94,947 है। मोरबी शहर मच्छू नदी के किनारे बसा हुआ है। यहां से लगभग 35 किलोमीटर दूरी पर समंदर शुरू हो जाता है, जो मोरबी को मध्य और पूर्वी एशिया के साथ अफ्रीका से जोड़ता है। देश का 70 प्रतिशत सिरामिक उद्योग इसी शहर में है। मोरबी में पर्यटकों को झूलतो पुल के अलावा नगर दरवाजा और त्रिमंदिर आकर्षित करते हैं। वर्तमान की दुखद घटना से पहले 11 अगस्त 1979 को मच्छू डैम टूटने से सैलाब आया था, जिसमें तकरीबन 2500 लोगों की मौत हुई थी। तब सैकड़ों करोड़ की संपत्ति की हानि हुई थी। 30 अक्टूबर की घटना मोरबी के इतिहास की दूसरी सबसे त्रासद घटना है।

यह ‘झूलतो पुल’ 1879 मोरबी के राजा वाघजी ठाकोर के समय बनाया गया था, जिसकी लंबाई 765 फुट और चौड़ाई 4.6 फुट थी।
नदी की सतह से 60 फुट की ऊंचाई पर बने इस पुल की गुणवत्ता जांचे बिना आम जनता के लिए छुट्टी के दिनों में खोल देने के पीछे लापरवाही नहीं, भ्रष्टाचार ही मुख्य कारण लगता है।
प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल के नाम पर घड़ी बनाने वाली कंपनी ओरेवा ट्रस्ट को नगरपालिका ने संचालन एवं पुनरुद्धार के लिए चयनित किया था।
दुर्घटना के बाद पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी में ओरेवा कंपनी का नाम लिखने के बजाय लिखा है, ‘पुल का संचालन करने वाली एजेंसी और उसका मैनेजमेंट या जांच में जिसका नाम मिले वह व्यक्ति’ जबकि टिकटों पर भी ओरेवा कंपनी का नाम लिखा है।
नगरपालिका द्वारा कोई भी फिटनेस सर्टिफिकेट नहीं दिया गया था।
जिला कलेक्टर ऑफिस और नगरपालिका के पास स्ट्रक्चर स्टेबिलिटी रिपोर्ट भी नहीं है।
दुर्घटना के बाद स्थानीय प्रशासन यह कहते हुए पल्ला झाड़ रहा है कि एक बार झूला ठेके पर देने के बाद स्ट्रक्चर रिपोर्ट और फिटनेस सर्टिफिकेट लेने की ज़िम्मेदारी एजेंसी की होती है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि पीपीपी मॉडल में प्रॉफिट बंटवारे को तो तय कर लिया जाता है, लेकिन ज़िम्मेदारी तय नहीं होती। मौजूदा मामले में भी यही होता दिख रहा है।
पुलिस की हिचक
दुर्घटना के बाद जांच की दिशा और गति देखकर भी यही लगता है कि सरकारी तंत्र इस घटना की जिम्मेदारी तय नहीं कर पा रहा है। अब तक पुलिस ने नौ लोगों को गिरफ्तार किया है। लेकिन जिस प्रकार की प्राथमिकी दर्ज हुई है और जिस तरह से जांच आगे बढ़ाई जा रही है, उससे लगता है कि अपराधी बहुत शक्तिशाली हैं। ओरेवा कंपनी के मलिक को अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया है। प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब पत्रकारों ने राजकोट रेंज के आईजी से पूछा कि अबतक ओरेवा के मलिक की गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई तो थोड़ा असहज होते हुए उन्होंने जवाब दिया, ‘जांच में जिसकी भूमिका निकलेगी, उसे छोड़ा नहीं जाएगा।’

पुलिस जांच में कुछ भी निकले, लेकिन इस पूरे प्रकरण से कुछ सवाल उभरकर सामने आए हैं, जिन पर विचार करना जरूरी है।

मोरबी का ऐतिहासिक झूलता पुल पिछले सात महीने से बंद था और उसके रेनोवेशन का काम जारी था। यह बात सामने आ रही है कि रेनोवेशन का काम ध्रान्ग्धरा की देव प्रकाश सलूशन ने किया था, जबकि पुल के संचालन का कार्य ओरेवा ग्रुप के पास है।
एक बात यह देखने की है कि पुल कहां से टूटा है। दरबार गढ़ के कोने पर दो पाए में एंकर फास्नर से लोहे के स्ट्रक्चर और लोहे की केबल को जोड़ा गया था। एंकर पिन टूट जाने से पूरा पुल धराशायी हो गया।
एंकर पिन कैसे टूटी, यह मुख्य जांच का विषय हो सकता है क्योंकि पुल के दोनों सिरे के स्ट्रक्चर को एंकर पिन जोड़ता है।
इससे आगे का सवाल है कि एंकर पिन की क्षमता से अधिक भार पुल पर कैसे और क्यों आया।
प्रसंगवश, प्रशासन की प्राथमिकता इससे भी झलकती है कि प्रधानमंत्री के मोरबी सरकारी अस्पताल आने की सूचना मिलने के बाद उसने अपनी ताकत अस्पताल का रंग-रोगन कराने में लगा दी।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स