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DevBhoomi Insider Desk
• Fri, 20 Jan 2023 12:54 pm IST


व्यंग्यः रोड़ शो बरामदे से शौचालय तक


भले ही राम भक्तों की खोपड़ी बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर की तुलसी पर समीक्षा के कारण हाथ लग गए मुद्दे को लेकर उबल रही हो, पारा सातवें आसमान पर हो लेकिन हमारे यहाँ का पारा कई दिन से शून्य के आसपास ही मंडरा रहा है। लगता है शून्य का आविष्कार हमारे शेखावाटी के ही किसी गणितज्ञ ने किया था।

आज हवा नहीं है। वैसे देशभक्तों की बात और है जिनकी हर तरफ हवा बह रही है, हमारी तो कभी हवा रही ही नहीं। हाँ, हवा न होने के कारण धूप का मज़ा लिया जा सकता। जनवरी से हमने बरामदा सत्र का समय बदलकर आठ बजे का कर दिया है। इसके लिए हमें कौन सरकार के आदेशों का इंतज़ार करना है। कम से कम यहाँ तो हमारा कानून चलता है। न सही खाते में पंद्रह लाख, न सही अच्छे दिन, न सही दो करोड़ नौकरियाँ। सीकर में कम से कम धूप का सुख तो है ही।

जैसे ही चाय आई, तोताराम ने कहा- इसे ढककर रख दे। पहले लघु शंका का समाधान करूंगा, फिर जल का सेवन और तत्पश्चात चाय।


हमने कहा- क्या बात है तोताराम, आज तो बड़ी राष्ट्रीय हिंदी बोल रहा है।

बोला- क्या किया जाए मास्टर, जब से इकबाल की ‘लब पे आती है दुआ’ प्रार्थना करवाने वाले मास्टर को निलंबित किया गया है तब से हिन्दुस्तानी के शब्दों से बचने में ही समझदारी है।

हमने कहा- तो हमें यह सब तफसील बताने की क्या ज़रूरत है। जा कर आ, सब सोलह संस्कार। तुझे क्या शौचालय का रास्ता नहीं मालूम?

बोला- रास्ता तो मालूम है लेकिन मैं वहाँ तक रोड़ शो करते हुए जाना चाहता हूँ। इसलिए अपनी वह बीस साल पुरानी पहिये वाली सेकेण्ड हैण्ड कुर्सी यहाँ ले आ।

हमने कहा- तू क्या अपने को मोदी जी जितना बड़ा नेता समझता है जो जयसिंह रोड़ से पटेल चौक होते हुए एन डी एम सी कन्वेंशन सेंटर तक जाने के लिए रोड़ शो की तरह, बरामदे से शौचालय तक जाने के लिए रोड़ शो करे। उनकी तो मज़बूरी है। चुनाव आ रहे है। ऐसे में अगर घर में बैठे रहे तो जनता सचमुच घर ही बैठा देगी। इसलिए झंडी, फर्रियां, ढोल, नगाड़े, गायक, वादक जुटाने पड़ते हैं। उनका तो हर रास्ता चुनाव के वैकुण्ठ की तरफ ही जाता है। हो सकता है वे घर में भी एक कमरे से दूसरे कमरे में भी नए-नए वस्त्र पहनकर वाइपर की तरह हाथ हिलाये हुए जाते होंगे।

बोला- यह सच है कि बरामदा संसद का आजीवन उपाध्यक्ष हूँ। कोई इस बरामदा संसद में नहीं आना चाहता जब तक कि अडवानी जी की तरफ ज़बरदस्ती न बिठा दिया जाए। मेरे इस पद को किसी चुनाव का कोई खतरा नहीं फिर भी तुझे एक मास्टर की इतनी सी हसरत भी बर्दाश्त नहीं। न सही पंद्रह किलोमीटर का रोड़ शो। पांच मीटर में ही तसल्ली कर लेंगे। पोती फोटो ले लेगी। यहीं कहीं लगा देंगे- बरामदा संसद के उपाध्यक्ष तोताराम का पांच मीटर लम्बा भव्य रोड़ शो।

हमने कहा- तुझे किसी रोड़ शो की जरूरत ही क्या है? रोज सुबह जब चप्पलें फटकारता हुआ आता है तो पूरी पारदर्शिता पूर्वक तेरा पूरा रोड़ शो हो जाता है। गली के कुत्ते तक तेरी यह भव्य वेशभूषा और चप्पलों की फटफट ध्वनि पहचानते हैं।

बोला- तो क्या मोदी जी कोई नहीं पहचानता जो व रोज रोज रोड़ शो करते हैं?

हमने कहा- उन्हें पहचानना इतना सरल नहीं है।वे काव्यशास्त्र में सौन्दर्य की तरह नित नूतन हैं।

‘क्षणे क्षणे यन्नवतामुपैति तदेव रूपं रमणीयतायाः’

तभी

लिख बैठ जाकी छवी गहि-गहि गरब गरूर
चतुर चितेरे जगत के भये न केते कूर

उस नायिका का सौन्दर्य इतना नवीन है कि उसकी छवि का अंकन करने में जाने जगत के कितने ही चित्रकार मूर्ख सिद्ध हो चुके हैं।

और फिर उन्हें तो 2024 के चुनाव का रोड़ मैप बनाने के लिए रोड़ शो करना ज़रूरी है।तेरी का क्या मजबूरी है?

हर अवसर पर अलग-अलग तरह की दाढ़ी, अलग-अलग तरह का विन्यास और अलग-अलग तरह का ईवेंट. तू क्या खाकर उनका मुकाबला करेगा?

बोला- न सही 40 हजार रुपए का मशरूम; दो रुपए किलो की सैंजने की पत्ती का परांठा तो खा सकता हूँ। क्या सामान्य व्यक्ति को इतने प्रदर्शन मात्र का अधिकार नहीं? कोई बात नहीं, मैं खुद ही अपनी कुर्सी ठेलूँगा और खुद ही अपने मुंह से पूं पूं करके बैंड की ध्वनि निकालूँगा। तू मुझे कुछ भी कह लेकिन जब आदमी आत्मप्रशंसा, आत्ममुग्धता और आत्मप्रदर्शन पर उतर आता है तो फिर कैसी शर्म।

एक तरफ हो और देख मेरा रोड़ शो।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स