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DevBhoomi Insider Desk
• Mon, 16 Jan 2023 1:15 pm IST


रिश्तेदार होते तो क्या ऐसे होते?


कुछ साल पहले मेरी पोस्टिंग शिमला थी। इत्तेफाक से बेटी वहीं के डेंटल कॉलेज से बीडीएस करने लगी थी। उन्हीं दिनों हिमाचल सरकार ने वरिष्ठ नागरिकों के लिए एक योजना शुरू की, जिसमें वरिष्ठ नागरिक सरकारी अस्पताल से नया डेंचर (नकली दांत का सेट) लगवा सकते थे। पंजाब के एक सज्जन शिमला में रहते थे। उनके नकली दांत बनाने की जिम्मेदारी बेटी को मिली। उसकी इंटर्नशिप के दौरान बनाए जाने वाला वह पहला डेंचर था। स्वाभाविक रूप से डर भी लग रहा था उसे। लेकिन सब ठीक रहा, उन बुजुर्गवार को डेंचर बिलकुल फिट बैठा और उन्हें पसंद भी आया। वह बहुत खुश हुए और बेटी को खूब तारीफ मिली।

कुछ दिनों बाद जब वह पंजाब गए वहां से बेटी के लिए खाने की ढेरों चीजें बतौर उपहार लाए। उन्होंने मेरी बेटी को अपनी बेटी समझना शुरू कर दिया था। एक दिन वह मेरे ऑफिस आए। उनके साथ पुरानी हिंदी फिल्मों के गानों के कैसेट थे। चाय पीते हुए कहने लगे, मेरी एक अर्ज है आप जब भी डॉक्टर साहिबा के लिए रिश्ता तय करें, एक बार लड़का मुझे भी दिखा दें। मुझे उनकी आत्मीय बात हैरान करते हुए भी अच्छी लगी। कुछ दिन बाद अपने बेटे की नई नौकरी के चलते वह गुरुग्राम शिफ्ट हो गए। फिर कभी-कभार उनके फोन आते रहे। बेटी के लिए एक युवक की फोटो और बायोडाटा भी भेजा।

बेटी की शादी में हमने उन्हें न्योता भेजा। वह आए और एक रात रुके भी। आयोजन स्थल के मुख्य द्वार पर जहां हम पति-पत्नी और बाकी पारिवारिक सदस्य मेहमानों का स्वागत करने के लिए खड़े हुए, वहां वह बहुत देर तक हमारे साथ खड़े रहे। ऐसे अवसरों पर आम तौर पर कई निकट संबंधियों से भी आग्रह करना पड़ता है। उनकी पुरानी नाराजगियों और नखरों की तनी हुई रबड़ को ढीला करने के लिए अनुनय-विनय के गीत गाने पड़ते हैं। कई मामलों में आशा-अपेक्षा करते-करते लंबा समय बीत जाता है, मगर बात नहीं बनती। वहीं अनजान लोगों से प्यार, स्नेह और विशुद्ध अपनेपन के रिश्ते कब जुड़ जाते हैं पता नहीं चलता। कई बार सोचा कि काश, बेटी के यह पहले मरीज अगर हमारे रिश्तेदार होते तो कितना अच्छा होता। फिर तुरंत यह भी ख्याल आता है कि अगर वह हमारे रिश्तेदार होते तो क्या ऐसे होते? 

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स