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DevBhoomi Insider Desk
• Sat, 25 Feb 2023 12:25 pm IST


व्यंग्यः मुँहतोड़ जवाब


पत्नी का भी अब अस्सीवाँ वर्ष चल रहा है। यदि राजनीति में होती तो किसी अवतारी जनसेवक के निष्कंटक वर्चस्व के लिए उसे एक तरफ कर दिया जाता। लेकिन वह हम, तोताराम और उसकी पत्नी के साथ-साथ स्वेच्छा से ही बरामदा संसद की स्थायी सदस्य है। आडवाणी जी की तरह उसके भी इस पद को कोई खतरा नहीं है। हालांकि आडवाणी जी की तरह वह अब सजग और आशावादी नहीं है। बस, किसी तरह हमारे चाय पर चर्चा के उपक्रम के इंफ्रा स्ट्रक्चर को संभाले हुए है।

वैसे 2020 में एक बार लटपटा गई थी लेकिन साथ-संयोग शेष था सो लौट आई। अब विगत 12 फरवरी को फिर एक झटका लगा। जयपुर भर्ती करवाना पड़ा। भगवान ने फिर लाज रख ली। कल 18 फरवरी को देर रात डिस्चार्ज होकर लौटे। तोताराम को तत्काल खबर नहीं दी लेकिन सुबह तो खबर हो ही गई।

आज हम बरामदे में नहीं बैठे। तोताराम अंदर ही आ गया। कई देर तक कुछ नहीं बोला। हमने ही मौन भंग किया- कुछ तो बोल। अब तो तेरी भाभी एक बार लौट ही आई।लेकिन आज चाय हम बनाते हैं।


बोला- चाय की कोई जरूरत नहीं। घर से पीकर आया हूँ। वैसे भी आज मूड ठीक नहीं है। हम यहाँ बैठे हैं और उधर देश के शत्रु सक्रिय हो रहे हैं।

हमने कहा- तोताराम, इस देश को कोई खतरा नहीं है। यह देश महान हैं, विश्वगुरु है। यहाँ के वीर लाल आँखों वाले और 56 इंची सीने वाले हैं। जिन्हे देखते ही अच्छे-अच्छों को दस्त लगने लग जाते हैं। हमारे वीर पुरुष नेता ही नहीं, नेत्रियाँ भी एक से एक वीरांगनाएं हैं। कभी रसोई वाले चाकू तो कभी जुबान वाले चाकू तेज किये हुए ही रखती हैं। और कुछ नहीं तो गालियों से ही शत्रुओं की हालत खराब कर देंगी।

देश की जनता को जाग्रत और सक्रिय रखने के लिए ऐसे आह्वान किये ही जाते। जैसे हर चुनाव में हेमामलिनी शोले की ‘बसंती’ की इज्जत को खतरे में बताकर वोट ले ही जाती हैं। अभी कुछ दिन पहले अदानी जी ने बताया था कि हिंडनबर्ग नामक किसी असुर ने देश पर हमला कर दिया है। अब और क्या चक्कर पड़ गया ?

बोला- दो दिन पहले ही स्मृति ईरानी ने बताया है कि अमरीका का कोई एक बूढ़ा सेठ है। पता नहीं, क्या नाम है -कोई सोरॉस-फ़ोरोस। वह मोदी जी को निशाना बना कर भारत के लोकतंत्र को खत्म करना चाहता है। स्मृति जी ने आह्वान किया है कि हम सब भारतीयों को मिलकर उस बूढ़े को मुँहतोड़ जवाब देना है।

हमने कहा- ईरानी स्मृति हो या विस्मृति, मोदी नरेंद्र, सुरेन्द्र या महेंद्र कोई भी हो, लोकतंत्र को कभी कोई खतरा नहीं होता। वैसे हमेशा खतरा बताया जरूर जाता है। जब ‘क’ को कुर्सी मिल जाती है तो ‘ख’ का और ‘ख’ को कुर्सी मिल जाती है तो ‘क’ का लोकतंत्र खतरे में पड़ जाता है। जिसके पास पैसे होते हैं उसका भी लोकतंत्र कभी खतरे में नहीं पड़ता। वह चुने-चुनाए लोकतंत्र को आवश्यकतानुसार बाजार भाव से दो पैसे फालतू देकर लोकतंत्र खरीद लेता है। जब किसी को बीफ वाला होटल खोलना होता है या किसी को अपने चुनावी फंड के लिए हजारों करोड़ का बेनामी चन्दा लेना होता है तो कोई हमें न पूछता है, न जवाब देने को कहता है।

बोला- फिर भी जब देश का मामला है तो हम इस प्रकार तटस्थ नहीं रह सकते।

हमने कहा- लेकिन यह लोकतान्त्रिक बात है। लोकतंत्र में बात का उत्तर बात से दिया जाता है। यह नहीं कि किसी ने तुलसीदास की समीक्षा कर दी तो उसकी जीभ काटने का फरमान जारी कर दिया जाए। या गाय लेकर जा रहे किसी खास तरह के पायजामे या दाढ़ी वाले को कोई स्वघोषित गौ सेवक मारकर कार में डालकर जला दे।

हमारे लिए संकट के समय कौन आता है ? सब अपने स्वार्थ के लिए 400 रुपए के सिलेंडर पर प्रदर्शन करते हैं और 1100 रुपए के सिलेंडर पर चुप रह जाते हैं।

बोला- तो कोई बात नहीं। लोकतंत्र में कभी-कभी कुछ अवतारी नेताओं के विकल्प नहीं होते अन्यथा देश के तथाकथित शत्रुओं को सीधा करने के लिए तो विकल्प होते ही हैं। यदि तुझे ‘मुँहतोड़ जवाब’ पसंद नहीं है तो कोई बात नहीं; तू हाथ तोड़, कमर तोड़, घुटना तोड़, नाक तोड़ जैसे विकल्पों में से अपनी पसंद का विकल्प चुन सकता है।

हमने कहा- ‘तोड़’ के साथ इस शब्द युग्म में एक शब्द ‘जोड़’ भी आता है। हम ‘तोड़’ से पहले ‘जोड़’ को भी आजमाना चाहते हैं।

बोला- लेकिन हममें इतना धीरज नहीं है। कोई बात नहीं। चलूँ, सभी तुझ जैसे कायर नहीं हैं। यह वीर भूमि है। लोग धार लगा सब्जी वाला चाकू लेकर सड़क पर तैयार खड़े हैं।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स