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DevBhoomi Insider Desk
• Tue, 28 Feb 2023 12:55 pm IST


जब शिवरतन बन गए सौतन


एक दिन मैं अपने एक परिचित के घर जा रही थी। गंगा किनारे की घनी आबादी वाली बस्ती। गलियों की टेढ़ी-मेढ़ी चाल देखकर मैं चक्कर में थी। परिचित का पता मेरे हाथ में था। वहां मकान या गली नंबर जैसी कोई चीज न थी। बस घर के मुखिया का नाम और बस्ती ही असली पता था। मैं शिवरतन जी का घर पूछते हुए भटक रही थी, मगर कोई बता नहीं पा रहा था। सब टका सा जवाब देते, ‘यहां इस नाम का कोई नहीं रहता।’ अंत में एक व्यक्ति ने रतन नाम के किसी व्यक्ति का घर बताते हुए कहा, ‘आप उन्हीं का घर खोज रही होंगी। नाम ठीक से याद नहीं होगा।’ मैं उस घर में पहुंची मगर वहां मेरा सामना बिल्कुल अजनबी लोगों से हुआ। उनसे मैंने अपनी सारी परेशानी कह सुनाई। गर्मी से मेरा हाल बेहाल था। मुझे पसीने से तरबतर देख उन्हें तकलीफ हुई। अब तक सब भीतर से निकल आए थे। मुझे खाट पर बैठा दिया। एक महिला झट से शरबत घोलने लगी। मैंने घने संकोच से कहा, ‘आप परेशान न हों, सिर्फ मुझे शिवरतन जी का पता बता दें।’

परिवार के सबसे बुजुर्ग बोले, ‘मैं इस बस्ती के घर-घर से परिचित हूं। इस नाम का कोई आदमी आसपास नहीं रहता। शायद तुमको नाम ठीक से याद नहीं।’ हो सकता है कि वाकई मैं नाम भूल रही। वैसे भी चाचा जी के यहां कौन सा रोज का आना-जाना है। यही सोच अपनी याददाश्त को कोसते मैं घर लौट आई। कुछ समय बाद शिवरतन जी का बेटा आकाश हमारे घर आया। आते ही मैंने उसके सामने उस दिन की भटकन से मिली पीड़ा परोस दी। वह ठठाकर हंस पड़ा। कहने लगा, ‘दीदी तुमने नाम ही गलत पूछा।’ मैंने कहा, ‘क्यों चाचा जी का नाम शिवरतन ही है ना? यही नाम तो सबको बता रही थी।’ ‘हां, नाम तो यही है पर नाम से क्या होता है। उनका नाम तो बिगड़ कर कब का सौतन हो गया। पूरी बस्ती उन्हें इसी नाम से जानती है।’ मैं समझ नहीं पा रही थी, नाम के इस आविष्कारी बिगाड़ पर हंसू या रोऊं।

आकाश ठीक ही कह रहा था, नाम से क्या होता है। सचमुच कई बार नाम बोलचाल में बिगड़ कर या व्यक्ति की किसी खास पहचान से जुड़कर कुछ का कुछ बन जाते हैं। आस-पड़ोस में ही परमेश्वर कब परमेसर हो गए या लक्ष्मी लछमिनिया हो गई, मुहल्ले के लोगों को याद भी नहीं। राम बक्श ‘बकस’ (संदूक) बन गए और पता भी नहीं चला। मेरा नाम भी सही उच्चारण के साथ लेने वाले मेरे आस-पड़ोस में कम ही रहे। कभी मैं सुर बनी तो कभी अंत में सती। इसी तरह असली नाम भले ही कुछ रहा हो, कई लोगों की पहचान उनकी किसी ‘खासियत’ से टंक जाती है। एक मास्टर साहब का पैर थोड़ा टेढ़ा था। सो वह लंगड़ू मास्टर साहब हो गए। उनका असली नाम कोई नहीं जानता था। एक पंडित जी को थोड़ा कूबड़ है तो उनका नाम टेढ़कु पंडितजी हो गया।

बिगड़े हुए नाम रखने में भी हमारे देश का कोई तोड़ नहीं है। बिगड़े भी इतने कि प्यार से लेने वाला नाम दुत्कार सा जान पड़ता है। गोबर, पगली, भग्गन, हग्गन जैसे हास्य रस से भरपूर नाम मिल जाएंगे। एक अति सुंदर लड़की का नाम बोरा इसलिए रख दिया गया, क्योंकि वह सदा बोरा बिछाकर बैठती। मुझे लगने लगा है शायद इन बिगड़े नामों को लेकर ही कहा गया होगा ‘नाम में क्या रखा है?’

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स